भीष्म पितामह ने आखिर क्यों नहीं किया द्रौपदी के चीरहरण का विरोध, मृत्युशैया पर बताया सच

महाभारत में एक योद्धा ऐसे भी थे, जिन्होंने कौरवों की ओर से युद्ध किया किन्तु फिर भी पांडव उन्हें महामहीम कहकर संबोधित करते थे | भीष्म पितामह को क्षत्रिय धर्म का ज्ञान था लेकिन फिर भी उन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कौरवों सेना का साथ दिया |

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लेकिन एक प्रश्न कई लोगों के मन में उठता है कि आखिर क्यों भीष्म पितामह ने द्रौपदी के चीरहरण का विरोध नहीं किया और सभा में मूक बनकर खड़े रहे |

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महाभारत की एक घटना के अनुसार जब भीष्म पितामह बाणों की शैया पर अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे तो द्रौपदी ने उनसे यह सवाल किया था कि आखिर वे अतीत में हो रहे पाप पर मौन धारण किये खड़े थे? वे यदि चाहते तो इस रोक सकते थे, जिसके बाद महाभारत युद्ध की नौबत ही नहीं आती | इसपर भीष्म पितामह ने दुखी होकर द्रौपदी को उत्तर दिया कि मनुष्य जैसा अन्न ग्रहण करता है, उसकी बुद्धि और विवेक भी वैसा ही हो जाता है | मैने समस्त जीवन पापियों का अन्न ग्रहण किया इसीलिए मेरी बुद्धि उस समय कुंद हो गयी और मैं अन्याय को अपने समक्ष होता देख भी चुप रहा | मैं कौरवों का ऋणी था और यही मेरे मौन का कारण था |

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इसपर द्रौपदी ने भीष्म पितामह से कहा कि धर्म के लिए आवाज़ उठाना ही कर्तव्य है | जो इससे विमुख होता है उसका यही हाल होता है जो आज आपका है | आगे भी ऐसी ही ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त करने के लिए कृपया हमें फॉलो करें | Source: Wisejot Original

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