महाराणा प्रताप के जीवन के संघर्ष की एसी कविता जिसे पढ़ के आपके रोंगटे खड़े हो जाएँगे
अरे घास री रोटी ही , जद बन बिलावडो ले भाग्यो
नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो,राणा रो सोयो दुख जाग्यो
अरे घास री रोटी ही
हुँ लड्यो घणो , हुँ सहयो घणो, मेवाडी मान बचावण न
हुँ पाछ नहि राखी रण में, बैरयां रो खून बहावण में
जद याद करुं हल्दीघाटी , नैणां म रक्त उतर आवै
सुख: दुख रो साथी चेतकडो , सुती सी हूंक जगा जावै
अरे घास री रोटी ही
पण आज बिलखतो देखुं हूं , जद राज कंवर न रोटी न
हुँ क्षात्र धरम न भूलूँ हूँ , भूलूँ हिन्दवाणी चोटी न
महलां म छप्पन भोग झका , मनवार बीना करता कोनी
सोना री थालियां, नीलम रा बजोट बीना धरता कोनी
अरे घास री रोटी ही
ऐ हा झका धरता पगल्या , फूलां री कव्ली सेजां पर
बै आज फिरे भुख़ा तिरसा , हिन्दवाण सुरज रा टाबर
आ सोच हुई दो टूट तडक , राणा री भीम बजर छाती
आँख़्यां में आंसु भर बोल्या , में लीख़स्युं अकबर न पाती
पण लिख़ूं कियां जद देखूँ हूं , आ राडावल ऊंचो हियो लियां
चितौड ख़ड्यो ह मगरा में ,विकराल भूत सी लियां छियां
अरे घास री रोटी ही
म झुकूं कियां है आण मन , कुल रा केसरिया बाना री
म बूज्जू कियां हूँ शेष लपट , आजादी र परवना री
पण फेर अमर री सुण बुसकयां , राणा रो हिवडो भर आयो
म मानुं हूँ तिलीसी तन , सम्राट संदेशो कैवायो
राणा रो कागद बाँच हुयो , अकबर रो सपनो सौ सांचो
पण नैण करो बिश्वास नही ,जद बांच-बांच न फिर बांच्यो
अरे घास री रोटी ही
कै आज हिमालो पिघल भयो , कै आज हुयो सुरज शीतल
कै आज शेष रो सिर डोल्यो ,आ सौच सम्राट हुयो विकल्ल
बस दूत ईशारो जा भाज्या , पिथल न तुरन्त बुलावण न
किरणा रो पिथठ आ पहुंच्यो ,ओ सांचो भरम मिटावण न
अरे घास री रोटी ही
बीं वीर बांकूड पिथल न , रजपुती गौरव भारी हो
बो क्षात्र धरम को नेमी हो , राणा रो प्रेम पुजारी हो
बैरयां र मन रो कांटो हो , बिकाणो पुत्र करारो हो
राठोङ रणा म रह्तो हो , बस सागी तेज दुधारो हो
अरे घास री रोटी ही
आ बात बादशाह जाण हो , घावां पर लूण लगावण न
पिथल न तुरन्त बुलायो हो , राणा री हार बंचावण न
म्है बान्ध लियो है ,पिथल सुण, पिंजर म जंगली शेर पकड
ओ देख हाथ रो कागद है, तु देख्यां फिरसी कियां अकड
अरे घास री रोटी ही
मर डूब चुंठ भर पाणी म , बस झुठा गाल बजावो हो
प्रण टूट गयो बीं राणा रो , तूं भाट बण्यो बिड्दाव हो
म आज बादशाह धरती रो , मेवाडी पाग पगां म है
अब बता मन,किण रजवट र, रजपूती खून रगा म है
अरे घास री रोटी ही
जद पिथठ कागद ले देखी , राणा री सागी सेनाणी
नीचै से सुं धरती खसक गयी, आँख़्या म भर आयो पाणी
पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात सपा ही झुठी है
राणा री पाग सदा उंची , राणा री आण अटूटी है
अरे घास री रोटी ही
ल्यो हुकम हुव तो लिख पुछं , राणा र कागद र खातर
ले पूछ भल्या ही पिथल तू ,आ बात सही, बोल्यो अकबर
म्है आज सुणी ह , नाहरियो श्यालां र सागे सोवे लो
म्है आज सुणी ह , सुरज डो बादल री ओट्यां ख़ोवे लो
म्है आज सुणी ह , चातकडो धरती रो पाणी पीवे लो
म्है आज सुणी ह , हाथीडो कुकर री जुण्यां जीवे लो || म्है आज सुणी ह , थक्या खसम, अब रांड हुवे ली रजपूती
म्है आज सुणी ह , म्यानां म तलवार रहवैली अब सुती
तो म्हारो हिवडो कांपे है , मुछ्यां री मौड मरोड गयी
पिथल न राणा लिख़ भेजो , आ बात कठ तक गिणां सही.
अरे घास री रोटी ही
पिथठ र आख़र पढ्तां ही , राणा री आँख़्यां लाल हुई
धिक्कार मन मै कायर हुं , नाहर री एक दकाल हुई
हुँ भूख़ मरुँ ,हुँ प्यास मरुँ, मेवाड धरा आजाद रहे
हुँ भोर उजाला म भट्कुं ,पण मन म माँ री याद रहे
हुँ रजपुतण रो जायो हुं , रजपुती करज चुकावुंला
ओ शीष पडै , पण पाग़ नही ,पीढी रो मान हुंकावूं ला
अरे घास री रोटी ही
पिथल क ख़िमता बादल री,जो रोकै सुर्य उगाली न
सिंहा री हातल सह लेवै, बा कूंख मिली कद स्याली न
धरती रो पाणी पीवे ईसी चातक री चूंच बणी कोनी
कुकर री जूण जीवेलो हाथी री बात सुणी कोनी ||
आ हाथां म तलवार थकां कुण रांड कवै है रजपूती
म्यानां र बदलै बैरयां री छातां म रेवली सुती ||
मेवाड धधकतो अंगारो, आँध्याँ म चम – चम चमकलो
कडक र उठ्ती ताना पर, पग पग पर ख़ांडो ख़ड्कै लो
राख़ो थे मुछ्यां ऐंठेडी, लोही री नदीयां बहा दयुंलो
हुँ अथक लडुं लो अकबर सूं, उज्ड्यो मेवाड बसा दूलो
जद राणा रो शंदेष गयो पिथल री छाती दूणी ही
हिन्दवाणो सुरज चमको हो, अकबर री दुनिया सुनी ही
For latest news follow us - www.biglatestnews.com
नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो,राणा रो सोयो दुख जाग्यो
अरे घास री रोटी ही
हुँ लड्यो घणो , हुँ सहयो घणो, मेवाडी मान बचावण न
हुँ पाछ नहि राखी रण में, बैरयां रो खून बहावण में
जद याद करुं हल्दीघाटी , नैणां म रक्त उतर आवै
सुख: दुख रो साथी चेतकडो , सुती सी हूंक जगा जावै
अरे घास री रोटी ही
पण आज बिलखतो देखुं हूं , जद राज कंवर न रोटी न
हुँ क्षात्र धरम न भूलूँ हूँ , भूलूँ हिन्दवाणी चोटी न
महलां म छप्पन भोग झका , मनवार बीना करता कोनी
सोना री थालियां, नीलम रा बजोट बीना धरता कोनी
अरे घास री रोटी ही
ऐ हा झका धरता पगल्या , फूलां री कव्ली सेजां पर
बै आज फिरे भुख़ा तिरसा , हिन्दवाण सुरज रा टाबर
आ सोच हुई दो टूट तडक , राणा री भीम बजर छाती
आँख़्यां में आंसु भर बोल्या , में लीख़स्युं अकबर न पाती
पण लिख़ूं कियां जद देखूँ हूं , आ राडावल ऊंचो हियो लियां
चितौड ख़ड्यो ह मगरा में ,विकराल भूत सी लियां छियां
अरे घास री रोटी ही
म झुकूं कियां है आण मन , कुल रा केसरिया बाना री
म बूज्जू कियां हूँ शेष लपट , आजादी र परवना री
पण फेर अमर री सुण बुसकयां , राणा रो हिवडो भर आयो
म मानुं हूँ तिलीसी तन , सम्राट संदेशो कैवायो
राणा रो कागद बाँच हुयो , अकबर रो सपनो सौ सांचो
पण नैण करो बिश्वास नही ,जद बांच-बांच न फिर बांच्यो
अरे घास री रोटी ही
कै आज हिमालो पिघल भयो , कै आज हुयो सुरज शीतल
कै आज शेष रो सिर डोल्यो ,आ सौच सम्राट हुयो विकल्ल
बस दूत ईशारो जा भाज्या , पिथल न तुरन्त बुलावण न
किरणा रो पिथठ आ पहुंच्यो ,ओ सांचो भरम मिटावण न
अरे घास री रोटी ही
बीं वीर बांकूड पिथल न , रजपुती गौरव भारी हो
बो क्षात्र धरम को नेमी हो , राणा रो प्रेम पुजारी हो
बैरयां र मन रो कांटो हो , बिकाणो पुत्र करारो हो
राठोङ रणा म रह्तो हो , बस सागी तेज दुधारो हो
अरे घास री रोटी ही
आ बात बादशाह जाण हो , घावां पर लूण लगावण न
पिथल न तुरन्त बुलायो हो , राणा री हार बंचावण न
म्है बान्ध लियो है ,पिथल सुण, पिंजर म जंगली शेर पकड
ओ देख हाथ रो कागद है, तु देख्यां फिरसी कियां अकड
अरे घास री रोटी ही
मर डूब चुंठ भर पाणी म , बस झुठा गाल बजावो हो
प्रण टूट गयो बीं राणा रो , तूं भाट बण्यो बिड्दाव हो
म आज बादशाह धरती रो , मेवाडी पाग पगां म है
अब बता मन,किण रजवट र, रजपूती खून रगा म है
अरे घास री रोटी ही
जद पिथठ कागद ले देखी , राणा री सागी सेनाणी
नीचै से सुं धरती खसक गयी, आँख़्या म भर आयो पाणी
पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात सपा ही झुठी है
राणा री पाग सदा उंची , राणा री आण अटूटी है
अरे घास री रोटी ही
ल्यो हुकम हुव तो लिख पुछं , राणा र कागद र खातर
ले पूछ भल्या ही पिथल तू ,आ बात सही, बोल्यो अकबर
म्है आज सुणी ह , नाहरियो श्यालां र सागे सोवे लो
म्है आज सुणी ह , सुरज डो बादल री ओट्यां ख़ोवे लो
म्है आज सुणी ह , चातकडो धरती रो पाणी पीवे लो
म्है आज सुणी ह , हाथीडो कुकर री जुण्यां जीवे लो || म्है आज सुणी ह , थक्या खसम, अब रांड हुवे ली रजपूती
म्है आज सुणी ह , म्यानां म तलवार रहवैली अब सुती
तो म्हारो हिवडो कांपे है , मुछ्यां री मौड मरोड गयी
पिथल न राणा लिख़ भेजो , आ बात कठ तक गिणां सही.
अरे घास री रोटी ही
पिथठ र आख़र पढ्तां ही , राणा री आँख़्यां लाल हुई
धिक्कार मन मै कायर हुं , नाहर री एक दकाल हुई
हुँ भूख़ मरुँ ,हुँ प्यास मरुँ, मेवाड धरा आजाद रहे
हुँ भोर उजाला म भट्कुं ,पण मन म माँ री याद रहे
हुँ रजपुतण रो जायो हुं , रजपुती करज चुकावुंला
ओ शीष पडै , पण पाग़ नही ,पीढी रो मान हुंकावूं ला
अरे घास री रोटी ही
पिथल क ख़िमता बादल री,जो रोकै सुर्य उगाली न
सिंहा री हातल सह लेवै, बा कूंख मिली कद स्याली न
धरती रो पाणी पीवे ईसी चातक री चूंच बणी कोनी
कुकर री जूण जीवेलो हाथी री बात सुणी कोनी ||
आ हाथां म तलवार थकां कुण रांड कवै है रजपूती
म्यानां र बदलै बैरयां री छातां म रेवली सुती ||
मेवाड धधकतो अंगारो, आँध्याँ म चम – चम चमकलो
कडक र उठ्ती ताना पर, पग पग पर ख़ांडो ख़ड्कै लो
राख़ो थे मुछ्यां ऐंठेडी, लोही री नदीयां बहा दयुंलो
हुँ अथक लडुं लो अकबर सूं, उज्ड्यो मेवाड बसा दूलो
जद राणा रो शंदेष गयो पिथल री छाती दूणी ही
हिन्दवाणो सुरज चमको हो, अकबर री दुनिया सुनी ही
For latest news follow us - www.biglatestnews.com
Jay Rajputana
ReplyDelete#गिरी_सुमेल_युद्ध--- 1544
ReplyDelete#बात 1544 ईसवी की है जब #शेरशाह सूरी एक युद्ध अभियान के बाद "मारवाड़"(राजपुताना) से होकर गुजर रहा था। मारवाड़ पर शक्तिशाली राजपूत राजा मालदेव राज्य कर रहे थे। शेरशाह मारवाड़ को देखकर उसे अपनाना चाहता था पर विना युद्ध के ये सम्भव नही था.
तो शेरशाह ने उनसे युद्ध का निर्णय लिया किन्तु उनकी ताकतवर सेना देखकर उसने कूटनीति का सहारा लिया। उसने मालदेव के मज़बूत योद्धाओं जैता राठौड़ व कुम्पा राठौड़ के शिविर में 10-10हज़ार रुपए पहुँचा दिए।और मालदेव को संदेश भिजवाया के आपके अधिकाँश योद्धाओं ने मेरे साथ संधि कर ली है। जो युद्ध होने पर मेरा साथ देंगे तो युद्ध मे आपकी हार निश्चित है।
मालदेव ने जेता व कुम्पा के शिविर में उनके जागने से पूर्व ही जाँच करवाई तो 10-10हजार रु0 बरामद हो गए। मालदेव को विश्वास ही नही हो रहा था किंतु धन की बरामदगी के कारण वो शेरशाह की चाल में फँस गए और उन्होंने जोधपुर लौटने का निर्णय लिया।
जब जैता व कुम्पा को इस घटना का पता चला तो उन्होंने कहा,"राठौड़ कभी बिक नही सकता-युद्ध से पीछे हट नही सकता" मृत्यु से भी बद्तर है कलंक लेकर जीना"
जैता राठौड़ व कुम्पा राठौड़ ने प्रण लिया कि शेरशाह को मारकर ही वह अपने ऊपर लगे कलंक को हटायेंगे। उन्होंने अपने थोड़े से सैनिकों को लेकर शेरशाह को युद्ध करने की चुनोती दी।
शेरशाह के सलाहकारों ने उसे चेताया और कहा कि ये राजपूत हैं,जिन्हें लड़ते हुए मर जाना पसंद है।इनसे युद्ध लड़कर अपनी सेना को घटाना बेवकूफी है। इस पर शेरशाह ने घमण्ड से कहा कि "मैं दिन भर में 1बोरी बाजरे की खा जाता हूँ ये तो मुट्ठी भर बाजरे के समान हैं।" युद्ध प्रारम्भ हो गया, राठौड़ राजपूतों ने दोनों हाथों में तलवारें चलाते हुए अफ़ग़ानियो को काटना शुरू कर दिया।देखते ही देखते अफगान सेना घटती जा रही थी। शेरशाह सूरी अब परेशान हो चुका था। नमाज़ के वक़्त युद्ध रोक दिया गया। शेरशाह ने अल्लाह से मदद माँगी ओर कहा कि या अल्लाह! ये युध्द किसी भी तरह जितवा दो मेरी इज्ज़त बच जायेगी।
भयंकर युद्ध चलता रहा अफ़ग़ानियो की लाशों पर राठौड़ आगे बढ़ते रहे। सभी राठौड़ एक से बढ़कर एक योद्धा नज़र आ रहे थे। इतने में दिल्ली से आयी शाही फ़ौज भी शेरशाह की ओर से युद्ध मे शामिल हो गयी। अपने से 20गुनी फ़ौज से लड़ते हुए सभी राजपूत योद्धाओं को वीरगती प्राप्त हुई। युद्ध में शेरशाह सूरी बुरी तरह घायल हो गया। और मरते-मरते बचा। उसके मुख से अनायास ही निकल गया कि "आज 1मुट्ठी बाजरे के ऊपर पूरे हिंदुस्तान को खो बैठता"
उसने कहा कि अगर ऐसे योद्धाओं की फ़ौज मेरे पास हो तो पूरे विश्व पर मेरा ही राज हो। इसके बाद उसने राजपुताना मारवाड़ पर युद्ध करना उचित नही समझा और वहाँ से वापिस दिल्ली चला गया।।
जैता व कुम्पा के वँशज जैतावत व कुम्पावत कहलाते हैं।यह युद्ध वर्तमान पाली जिले के जैतारण में हुआ था.
◆ राजन्य क्रोनिकल्स टीम ◆
Jai maharana
ReplyDeleteJai Maharana
ReplyDelete