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टिकट के लिए हाथ मलते रह गए कांग्रेस से भाजपाई बने कई पूर्व विधायक, भाजपा ने लगाया 'किनारे'
टिकट के लिए हाथ मलते रह गए कांग्रेस से भाजपाई बने कई पूर्व विधायक, भाजपा ने लगाया 'किनारे'
Amit shahm uddhav thakre, devendra fadanvis
अनुच्छेद-370 निरस्त करने के फैसले के बाद लोगों में जनमत बनाने में जुटी भाजपा ने पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना के साथ मिलकर महाराष्ट्र में चुनावी शंखनाद कर दिया है। शिवसेना के साथ गठबंधन से मुंबई में भाजपा के उन नेताओं को निराशा हाथ लगी है, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। उनकी स्थिति यह हो गई है कि न खुदा ही मिले न विसाले सनम। इससे देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में उत्तर भारतीय राजनीति कसौटी पर हैं।
2014 में मुंबई की 36 में से 15 सीटें जीतीं
दरअसल, 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर भारतीयों की बदौलत मुंबई की 36 में से सर्वाधिक 15 सीट जितने में सफल हुई थी। इस चुनाव में पहली बार भाजपा को उत्तर भारतीय वोट बैंक का अंदाजा लगा था। उसके बाद इस वोटबैंक पर कब्जे के लिए भाजपा ने मुंबई में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया था। उन्हें कहा गया था कि 2019 के विधानसभा चुनाव में उनको उम्मीदवार बनाया जाएगा, लेकिन भाजपा ने उन्हें किनारे कर दिया है। एकमात्र निवर्तमान राज्यमंत्री विद्या ठाकुर को उम्मीदवारी देकर अन्य उत्तर भारतीय नेताओं को ठेंगा दिखा दिया है।
उत्तर भारतीय समाज नाराज
विद्या ठाकुर की मुंबई के उत्तर भारतीय समाज मे उतनी पैठ नहीं है। मंत्री रहते हुए भी मंत्रालय स्थित उनका दफ्तर बंद ही रहता था। इसके चलते भाजपा के एक अन्य मंत्री ने उनके दफ्तर में कब्जा जमा लिया था। विधानसभा में भी उन्होंने शायद ही कभी कुछ बोला हो। सवाल यह उठ रहा है कि क्या भाजपा मुंबई में वोटों के लिहाज से निर्णायक उत्तर भारतीयों को ठीक से नहीं आंक पाई है या उन्हें मुंबई की राजनीति में उतना तवज्जो नहीं देना चाहती है। अंदरखाने मुंबई के उत्तर भारतीय समाज में भाजपा के प्रति निराश दिखने लगी है, लेकिन कोई भी नेता खुलकर बोलने से परहेज कर रहा है।
पूर्व विधायकों की राजनीति पारी दांव पर
कांग्रेस के पूर्व विधायक राजहंस सिंह, रमेश सिंह, दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री व फिल्मसिटी के उपाध्यक्ष अमरजीत मिश्र, पूर्व विधायक अभिराम सिंह, मृत्युंजय पांडेय, मनोभव त्रिपाठी, संजय पांडेय जैसे दर्जनों उत्तर भारतीय नेता हैं, जिनका राजनीतिक करियर दांव पर है। भाजपा इन्ही नेताओं के सहारे मुंबई और आसपास के करीब 50 लाख उत्तर भारतीयों के वोट बैंक पर नजर गड़ाए बैठी है। राजहंस सिंह विधायक चुने जाने से पहले एशिया की वैभवशाली मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) में रिकार्ड आठ साल तक विपक्ष के नेता रहे है। वहीं, रमेश सिंह दो बार विधायक चुने जा चुके हैं। मृत्युंजय पांडेय प्रदेश उत्तर भारतीय मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं, जबकि संजय पांडे प्रदेश भाजपा सचिव और मनोभव त्रिपाठी भाजपा युवामोर्चा महाराष्ट्र के उपाध्यक्ष रहे हैं और प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी के सदस्य हैं।
उत्तर भारतीयों पर कांग्रेस की निगाह
महाराष्ट्र में कांग्रेस ने हमेशा ही उत्तर भारतीयों के हितों का ख्याल रखा। पूर्व मंत्री दिवंगत रामनाथ पांडेय, डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी के अलावा चंद्रकांत त्रिपाठी, कृपाशंकर सिंह, आरिफ नसीम खान जैसे कई महत्वपूर्ण नाम है, जिन्हें कांग्रेस ने प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ाया। इसलिए मुंबई व आसपास के उत्तर भारतीय मतदाता परंपरागत तौर पर कांग्रेस के मतदाता थे। साल 2014 के मोदी लहर में उत्तर भारतीयों ने जमकर वोट डाले। अभी हाल में ही मुंबई के पूर्व उपमहापौर राजेश शर्मा को महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस का प्रवक्ता और मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष एकनाथ गायकवाड़ ने संदीप राममिलन शुक्ल को कोषाध्यक्ष का पद देकर उत्तर भारतीयों को का सच्चा हितैषी होने का संदेश दिया है।
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